महान योद्धा झलकारी बाई के सामने दो रास्ते थे. विभीषण या मीर जफर की तरह गद्दारी कर आराम से झांसी का शासक बन जाना. या इमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन करना !
महान झलकारी बाई ने दूसरा रास्ता चुना. रानी लक्ष्मीबाई को किले से सुरक्षित बहार निकाल दिया. खुद रानी लक्ष्मीबाई का भेष धारण कर रानी की ओर से युद्ध के मोर्चो पर सामने से युद्ध लड़ा !
लक्ष्मीबाई अपने दत्तकपुत्र को झांसी रियासत का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी. लेकिन ब्रिटिश शासन ने इनकार कर दिया. केवल 60,000 पेंशन देने पर राजी हुए. लक्ष्मीबाई पेंशन की रकम को बढ़ाकर मांगने लगी. ब्रिटिश शासन ने 60,000 से ज्यादा पेंशन पर राजी नही हुए !
लक्ष्मीबाई ने झांसी देने से इनकार कर दिया. ब्रिटिश जनरल हुग रोज़ को लक्ष्मीबाई को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का दायित्व सौंपा गया था. हुग रोज़ ने झांसी किले के पहरेदार जो एक राजपूत था उसे खरीद लिया था. उसने झांसी किले का दरवाजा खोल दिया !
झांसी किले से रानी लक्ष्मीबाई सुरक्षित भाग गई. रानी के भेष में कमान संभाली झलकारी बाई ने. ब्रिटिश सेना के साथ स्थानीय राजपूतों की सेना भी थी. झलकारी बाई के नेतृत्व में झांसी किले लिए भीषण युद्ध हुआ हुआ !
बहादुरी से लड़ते हुए हज़ारों सैनिक और झलकारीबाई वीरगति को प्राप्त हुए. झलकारी बाई के मृत शरीर को पहले ब्रिटिश सैनिकों ने रानी लक्ष्मीबाई समझा, लेकिन सही शिनाख्त होने पर जनरल हुग रोज़ उस वक़्त कहा था, क्या खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली झलकारी बाई थी !
ब्राह्मण अपनी लड़कियों को शिक्षा शस्त्र विद्या से वंचित रखते थे. फिर घोड़सवारी तलवारबाज़ी का सवाल ही नही उठता. यही सच्चा इतिहास है !
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