आरक्षण की वजह से बंदर भी पिछड़ गए वरना उससे पहले भारत के लोग अमेरिका, इंग्लैंड पर राज करते थे।
कितने बेशर्म किस्म के लोग हैं वे जो अपने ऐतिहासिक हार, बर्बादी, लाचारी, पिछड़ेपन को छुपाने के लिए आज आरक्षण को मुद्दा बनाये बैठे हैं। क्या आने वाले दिनों में वह समय तो नहीं आ गया जब इसबात पर युवा पीढ़ी बहस करेगी कि जाति आधारित व्यवस्था में किस जाति को क्या क्या जिम्मेदारियां दी गई थी? पढ़ने-पढ़ाने की? रक्षा करने की, धन संरक्षण की? और वे कब कब तथा किनकी नाकामयाबी की वजह से नाकाम हुई? उस नाकामी को पूरी तरह छुपाया क्यों गया?
आपके समक्ष सवाल यह किया जाता है कि हमारे देश पर तो फलाने लोगों ने, फलां देश ने, फलां धर्म ने आक्रमण किया पर इसपर कभी बात नहीं होती कि देश की सुरक्षा में नाकाम कौन हुए और क्यों?
इतने हजारों सालों तक एक तो गुलाम बनवाया फिर आज अपने ही कारनामों को छुपाकर, दूसरों को शोषण करने तथा उन्हें आगे बढ़ने से रोकने के लिए षड्यंत्र रचते रहते हैं। हमारा देश सोने की चिड़िया रहा हो या विश्वगुरु लेकिन इसे लूटने, टूटने के जिम्मेदारों को बेनकाब करना होगा।
एक आरक्षण जिसने यह कहा कि आपकी जातियों के अंदर उन लोगों को भी जरूरी एंट्री दी जाए जिनको तुम अछूत, बहिष्कृत तथा नीच मानते हों उसका जनसंख्या के अनुपात में प्रावधान बनाया बस। उनका होना इतना अखर रहा, तब जब पूरे देश की व्यवस्था का बहुत हिस्सा उन्ही के कंधों पर टिका हुआ है।
मत बरगलाने दो इस समाज को, न्यायिक, राजनैतिक, समाजिक व्यवस्था को ईमानदारी से ठीक करो। वर्चस्व वाली भावना का त्याग करो और संवैधानिक संस्थाओं को उनका कर्म याद दिलाओ।
अंग्रेजों ने तो कहा ही कि भारत की इस जातिय वर्चस्व वालों में न्यायिक चरित्र नहीं होता है पर आज दिख भी रहा है। मैं नहीं कहता हूं कि मंदिरों में जातिवाद है या मन्दिर में केवल ब्राह्मण जाति बैठी हैं, इस आरक्षण को खत्म करो!
लेकिन आप नगर निगम में जाओ ऊपर सब ऊंची जाति के बैठे मिलेंगे, नेताओं से लेकर अधिकारियों तक और सफाईकर्मी सब निम्न वर्ग के। ऐसा क्यों? सवर्ण भी गरीब हैं, मजबूर हैं तो सफाईकर्मी का काम क्यों नहीं करते? यह जातिय ऐंठन ही तो है?
समय रहते तोड़ दो इन तमाम वर्जनाओं को। भारत मे आज़ादी के बाद जब से समान प्रतिनिधित्व की प्रक्रिया चल रही थी सब आगे बढ़ रहे थे। उससे पहले गुलाम थे और आज फिर पिछड़ रहे हैं क्योंकि आजादी से पहले अधिकार नहीं था और आज अधिकार छीने या दबाए जा रहे हैं।
बहस यदि छिड़ी तो कारण जो भी रहे हैं, पहला सवाल यही होगा कि देश को गुलाम किसने बनने दिया, किसने लूटने दिया? आज की भांति तब के चौकीदार कहाँ थे? आज लोग जागृत हो रहे हैं और समझदारों को खुलकर आगे आना चाहिए। दलित लाइव्ज मैटर्स।