क्या संविधान लिखकर वाकई कोई कारनामा किया था बाबा साहेब ने? चलो इसबार सच्चाई जान लेते हैं।👇
1895 में पहली बार बाल गंगाधर तिलक ने एक संविधान लिखा था। अब इससे ज्यादा मैं इस संविधान पर न ही बोलूँ वह ज्यादा बेहतर है, फिर 1922 में गांधीजी ने संविधान की मांग उठाई, मोती लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और पटेल-नेहरू तक न जाने किन किन ने और कितने संविधान पेश किये। ये लोग आपस् में ही, एक व्यक्ति प्रारूप बनाता तो दूसरा फाड़ देता, दुसरा बनाता तो तीसरा फाड़ देता और इस तरह 50 वर्षों में कोई भी व्यक्ति भारत का एक (संविधान) का प्रारूप ब्रिटिश सरकार के समक्ष पेश नही कर सके।
उससे भी मजे की बात कि संविधान न अंग्रेजों को बनाने दिया और न खुद बना सके। अंग्रेजों पर यह आरोप लगाते कि तुम संविधान बनाएंगे तो उसे हम आजादी के नजरिये से स्वीकार कैसे करें। बात भी सत्य थी लेकिन भारत के किसी भी व्यक्ति को यह मालूम नही था कि इतने बड़े देश का संविधान कैसे होगा और उसमे क्या क्या चीजें होंगी? लोकतंत्र कैसा होगा? कार्यपालिका कैसी होगी? विधायिका व न्यायपालिका कैसी होगी? समाज को क्या अधिकार, कर्तव्य और हक होंगे आदि आदि..
अंग्रेज भारत छोड़ने का एलान कर चुके थे लेकिन वो इस शर्त पर कि उससे पहले तुम भारत के लोग अपना संविधान बना लें जिससे तुम्हारे भविष्य के लिए जो सपने हैं उन पर तुम काम कर सको। इसके बावजूद भी कई बैठकों का दौर हुआ लेकिन कोई भी भारतीय संविधान की वास्तविक रूपरेखा तक तय नही कर सका। यह नौटँकीयों का दौर खत्म नही हो रहा था,साइमन कमीशन जब भारत आने की तैयारी में था उससे पहले ही भारत के सचिव लार्ड बर्कन हेड ने भारतीय नेताओं को चुनौती भरे स्वर में भारत के सभी नेताओं, राजाओं और प्रतिनिधियों से कहा कि इतने बड़े देश में यदि कोई भी व्यक्ति संविधान का मसौदा पेश नही करता तो यह दुर्भाग्य कि बात है।
यदि तुम्हे ब्रिटिश सरकार की या किसी भी सलाहकार अथवा जानकार की जरूरत है तो हम तुम्हारी मदद करने को तैयार है और संविधान तुम्हारी इच्छाओं और जनता की आशाओं के अनुरूप हो। फिर भी यदि तुम कोई भी भारतीय किसी भी तरह का संविधानिक मसौदा पेश करते हैं हम उस संविधान को बिना किसी बहस के स्वीकार कर लेंगे। मगर यदि तुमने संविधान का मसौदा पेश नही किया तो संविधान हम बनाएंगे और उसे सभी को स्वीकार करना होगा।
अब यह मत समझना कि आजकल जैसे कई लोग हंसी मज़ाक उड़ाने लगे तो कई संगठन संविधान बदलने की बातें करते हैं। वह दौर अलग था, लोग सड़कों पर भी अंग्रेजों के हुक्म से चलते थे और यदि अंग्रेज हमारे देश के संविधान को लिखते तो हम आजादी के बाद उसे संशोधित या बदलने की सोचते तो पहले आपको यह समझना आवश्यक है कि जब भी किसी देश का संविधान लागू होता है तो वह संविधान उस देश का ही नही मानव अधिकार और सयुंक्त राष्ट्र तथा विश्व समुदाय के समक्ष एक दस्तावेज होता है जो देश का प्रतिनिधित्व और जन मानस के अधिकारों का संरक्षण करता है। दूसरी बात किसी भी संविधान के संशोधन में संसद का बहुमत और कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की भूमिका के साथ समाज के सभी तबकों की सुनिश्चित एवं आनुपातिक भागीदारी भी अवश्य होती है। इसलिए फालतू के ख्याल दिमाग से हटा देने चाहिए। दुसरा उदाहरण।
जापान एक विकसित देश है। अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी को परमाणु हमले से ख़ाक कर दिया था उसके बाद जापान का पुनरूत्थान करने के लिए अमेरिका के राजनेताओं, सैन्य अधिकारियों और शिक्षाविदों ने मिलकर जापान का संविधान लिखा था। फरवरी 1946 में कुल 24 अमेरिकी लोगों ने जापान की संसद डाइट के लिए कुल एक सप्ताह में वहां के संविधान को लिखा था जिसमे 16 अमेरिकी सैन्य अधिकारी थे। आज भी जापानी लोग यही कहते है कि काश हमे भी भारत की तरह अपना संविधान लिखने का अवसर मिला होता। बावजूद इसके जापानी एक धार्मिक राष्ट्र और अमेरिका एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र होते हुए दोनों देश तरक्की और खुशहाली पर जोर देते हैं, आरोप प्रत्यारोप पर नहीं।
बहरहाल! लार्ड बर्कन की चुनौती के बाद भी कोई भी व्यक्ति भी संवैधानिक मसौदा तक पेश नही कर सका और दुनिया के सामने भारत के सिर पर कलंक लगा। इस सभा में केवल कांग्रेस ही शामिल नही थी बल्कि मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा जिसकी विचारधारा पर आज के बीजेपी और संघ में सम्मिलित लोग थे। राजाओं के प्रतिनिधि तथा अन्य भी थे। सभी लोगों के प्रयासों पर जिन्ना ने पानी फेर दिया जब जिन्ना ने दो दो संविधान लिखने पर अड़ गए। एक पाकिस्तान के लिए और एक भारत के लिए। इसलिए बात की गम्भीरता को समझते हुए नेहरू इंग्लैण्ड से संविधान विशेषज्ञों को बुलाने पर विचार कर रहे थे। ऐसी बेइज्जती के बाद गांधीजी को अचानक डॉ अम्बेडकर का ख्याल आया और उन्हें संविधान सभा में शामिल करने की बात कर दी।
इस समय तक किसी भी टोली की तरफ़ से डॉ अम्बेडकर का कहीं कोई जिक्र तक नही था, सरदार पटेल ने यहाँ तक कहा था कि डॉ अम्बेडकर के लिए दरबाजे तो क्या हमने खिड़कियाँ भी बन्द की हुई है अब देखते हैं वो कैसे संविधान समिति में शामिल होते हैं। हालाँकि संविधान के प्रति समर्पण को देखते हुए पटेल ने बाबा साहेब को सबसे अच्छी फसल देने वाला बीज कहा था लेकिन पहले संविधान सभा मे शामिल न होने के लिए कई किस्से उपलब्ध हैं जिसमें चुनाव हरवाना हो या जहां से चुनाव जीते वह हिस्सा पाकिस्तान को देना हो।
कई सदस्य, कई समितियां, कई संशोधन, कई सुझाव और कई देशों के विचारों के बाद पृथक पाकिस्तान की घोषणा के बाद पहली बार 9 दिसम्बर 1946 से भारतीय संविधान पर जमकर कार्य हुए। इस तरह डॉ अम्बेडकर ने मसौदा तैयार करके दुनिया को चौंकाया। आज वो लोग संविधान बदलने की बात करते हैं जिनके पूर्वजों ने जग हंसाई करवाई थी। उस दौर में विश्व के अध्ययन को कॉपी-पेस्ट कहते हैं। मसौदा तैयार करने के पश्चात आगे इसे अमलीजामा पहनाने पर कार्य हुआ जिसमें भी खूब नौटँकियां हुई डॉ बी एन राव के बाद एक अकेले व्यक्ति बाबा साहेब थे जिन्होंने संविधान पर मन से कार्य किये।
पूरी मेहनत और लगन से पुरे 2 साल 11 माह 18 दिन बाद बाबा साहेब ने देशवासियों के सामने देश का अपना संविधान रखा जिसके दम पर आज देश विकास और शिक्षा की ओर अग्रसर बढ़ रहा है और कहने वाले कहते रहें मगर बाबा साहेब के योगदान ये भारत कभी नही भुला सकता है। हम उनको संविधान निर्माता के रूप तक सीमित नही कर सकते, आर्किटेक्ट ऑफ़ मॉडर्न इंडिया यूँ ही नही कहा गया कुछ तो जानना पड़ेगा उनके योगदान, समर्पण, कर्तव्य और संघर्षों को। इन्ही शब्दों के साथ आप सभी को संविधान दिवस की शुभकामनाये।
Credit- R P विशाल