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साइमन वापस जाओ, परन्तु क्यों


30मार्च1927 को हाउस ऑफ कॉमन्स में भारत सरकार अधिनियम1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा मार्च1927 में संवैधानिक सुधारों की समीक्षा एवं रिपोर्ट तैयार करने हेतु भारतीय विधिक आयोग (Indian Statutory Commission) की नियुक्ति का निर्णय लेने पर कंजरवेटिव दल के तत्कालीन सेक्रेटरी अॉफ स्टेट “लॉर्ड बरकनहेड” के बयान पर ध्यान दीजिए, “मुझे अस्पृश्य वर्ग के मामलों में गौर करना है। भारत में उनकी करोड़ों में जनसंख्या है। उनकी दशा दिल दहला देने वाली और ह्रदय पर चोट करने वाली है। उन्हें सभी प्रकार का सामाजिक व्यवहार से दूर रखा गया है। इस वर्ग का व्यक्ति यदि उच्च वर्ण के बीच आ जाता है तो सूर्य का प्रकाश अपवित्र हो जाता है। वे सार्वजनिक जलस्रोत से पानी नहीं पी सकते। अपनी प्यास बुझाने के लिए उन्हें मीलों भटकना पड़ता है। उन्हें सैकड़ों पीड़ियों से अछूत कहा जाता है। तो क्या इस कमीशन में कोई अस्पृश्य वर्ग का प्रतिनिधि नहीं होना चाहिए ? लोकतंत्र पर विश्वास रखने वाला कोई भी व्यक्ति, हमारे विरोधियों समेत, इसका कोई विरोध नहीं करेगा। मैं ऐसा कोई कमीशन बनाने के लिए तैयार नहीं जिसमें इस वर्ग का प्रतिनिधि न हो।”

    भारतीय विधिक आयोग के गठन की घोषणा 08 नवंबर1928 को हुई जिसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन सहित कुल सात सदस्य थे, इसलिए बाद में उसे साइमन कमीशन कहा गया। कमीशन में एक सदस्य मि. क्लीमेंट एटली भी थे जो बाद में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बने। कमीशन 03फरवरी 1928 को बम्बई, भारत पहुंचा तो सभी सवर्ण हिन्दू एकजुट होकर काले झंडे और 'साइमन वापस जाओ' के नारे लगाकर जबरदस्त विरोध कर रहे थे। बहिष्कार में मुस्लिमों को शामिल करने के उद्देश्य से डॉ.मुख्तार अहमद अंसारी की अध्यक्षता में 26-28 दिसंबर 1927 को मद्रास अधिवेशन में कांग्रेस ने साइमन कमीशन के बहिष्कार का प्रस्ताव पास किया था क्योंकि अंसारी 1920 में मुस्लिम लीग के भी अध्यक्ष रह चुके थे। इन विरोध करने वालों में तथाकथित प्रगतिशील और स्वंय को सर्वहारा वर्ग का हितैषी बताने वाले भी थे। परन्तु साइमन कमीशन बहुजनों के लिए कितना उपयोगी था, इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि इस आयोग का बहुजन नेताओं और कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह स्वागत किया।

कई छोटी-बड़ी सभाएं की और समर्थन में जवाबी नारे भी लगाए। 28नवम्बर1928 को लखनऊ में यह आयोग आया तो बहुजन वर्ग के नवयुवक कार्यकर्ता रामचरण मल्लाह और शिवदयाल सिंह चौरसिया तथा ननकू राम कोरी ने इस आयोग के स्वागत में चारबाग में नौटंकी और सभा का आयोजन किया। उनका कहना था कि भारत में दबी-कुचली, अस्पृश्य जातियों के साथ ब्राह्मण/सवर्ण द्वारा जो असमानता का दुर्व्यवहार होता है उसे यह आयोग देखेगा। दिल्ली में चौधरी यादराम (आर्यपुरा) और सरदार पृथ्वी सिंह जाटव (पहाड़गंज) ने भी एक सभा आयोजित की। कानपुर के कुछ स्थानों पर बहुजनों के मुहल्लों में इस आयोग के साथ डॉ.अंबेडकर और स्वामी अछूतानंद भी अवलोकन और जाँच के समय उपस्थित थे। इस अवसर पर मजदूर नेता छेदीलाल मिस्त्री और बाबूराम नारायण कोरी भी मौजूद थे। आगरा के खेमचंद जाटव जो 1920-30 तक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के सदस्य थे, वे भी आयोग के समक्ष साक्ष्य देने के लिए उपस्थित हुए। सतारा जिला महार संस्था के अध्यक्ष ज्ञानदेव ध्रुवनाथ घोलप ने कमीशन को अपने ज्ञापन में अछूतों के लिए मुस्लिमों की तरह निर्वाचक मंडल की मांग रखी। कमीशन का अछूतों ने ही नहीं बल्कि पिछड़ी जातियों ने भी जमकर स्वागत किया।

    साइमन कमीशन के समक्ष 18 बहिस्कृत संगठनों ने अपने साक्ष्य प्रस्तुत किए थे, जिनमें से 16 संगठनों ने पृथक निर्वाचन प्रणाली की माँग रखी थी। डॉ.अंबेडकर ने अल्पसंख्यकों की रक्षा हेतु वीटो पावर, विधायिका, विश्वविद्यालयों, निकायों आदि में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण, मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व, नौकरियों में छूट, शिक्षा में विशेष अनुदान आदि माँगे रखी थी जिस पर आयोग का रवैया सकारात्मक था। इस कमीशन की वजह से अछूतों की स्थिति में सुधार होने वाला था तो सवर्ण हिन्दुओं को ये कैसे बरदाश्त होता…इसी वजह से भगत सिंह जैसे प्रगतिशील कह जाने वाले भी तमाम सवर्ण हिन्दुओं के साथ “साइमन गो बैक” के नारे लगा रहे थे। भगत सिंह (27. 09.1907 -23.03.1931) की शायद कच्ची उम्र का तकाजा रहा होगा क्योंकि 30.10.1928 को लाहौर में हुए लाठीचार्ज, जिसमें लाला लाजपत राय (वैश्य) को गंभीर चोटें आयीं परन्तु उसकी मृत्यु 18दिन बाद 17.11.1928 को हुई, के समय उनकी आयु मात्र 21वर्ष थी।
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