औरंगाबाद : राखीगढ़ी
के डीएनए के बारे में हिंदी और मराठी अखबारों में झूठी खबरें छापी जा रही
है. राखीगढ़ी का डीएनए यह विदेशी ब्राह्मणों के साथ मिलता है. इसका कोई भी
सबूत प्रो. वसंत शिंदे ने नहीं दिया है और न ही ‘‘सेल’’ मैगजीन में छापे गए
रिपोर्ट में उसकी जानकारी है.
हरियाणा
के राखीगढ़ी में 2-4 हजार साल पहले का कंकाल मिला है. इसका रिपोर्ट अभी
मेरे हाथ में है, यह मेरे पास ओरिजनल रिपोर्ट है. ओरिजिनल रिपोर्ट में कहीं
पर भी नहीं लिखा हुआ है कि ब्राह्मण भारत के रहने वाले हैं. यह बात बहुजन
क्रांति मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक वामन मेश्राम ने कही है.
वामन
मेश्राम ने कहा भागवत का भी बयान है कि भारत के सभी लोगों का डीएनए एक है.
हम मोहन भागवत को खुली चुनौती देते हैं कि वे सबूत दें. अगर वें सबूत नहीं
दे सकते तो वे यह बात स्वीकार कर लें कि सभी ब्राम्हण विदेशी हैं.
प्रो.वसंत
शिंदे पूना में जो डीएनए रिपोर्ट बनाई है, इसमें कहीं पर भी नहीं लिखा हुआ
है कि ब्राह्मणों का डीएनए और समस्त भारतियों का डीएनए एक है. बल्कि,
डीएनए का रिपोर्ट माइकल बामशाद ने बनाया है.
डॉ.माइकल
बामशाद की रिपोर्ट कहती है कि ब्राह्मणों का डीएनए यूरेशियन लोगों से
मिलता है. बामशाद की रिपोर्ट कहती है कि वह भारत के रहने वाले नहीं हैं.
आगे
वामन मेश्राम ने कहा इसके बाद पूना का राजन दीक्षित नाम का ब्राह्मण है.
वह विदेश में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर है. यह बहुत बड़ी
यूनिवर्सिटी है, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी दुनिया की 10 यूनिवर्सिटी में एक
है.
राजन
दीक्षित ने खुद लिखा है मैं नाम के साथ बोल रहा हूँ. राजन दीक्षित द्वारा
पूना के ‘सकाल’ अखबार में उसकी खबर छपकर आई वो राजन दीक्षित की किताब हमारे
पास है. उन्होंने कहा राजन दीक्षित का कहना है कि ब्राह्मणों का डीएनए
यूरेशियन लोगों का है.
यही
नहीं उसने उससे ज्यादा आगे बढ़कर कहा है कि यूरेशिया में आस्कीमोझी नाम का
एरिया है, क्षेत्र है. उस एरिया में मोरूआ जाति के लोग हैं. मोरूआ
पर्टिकुलर बता रहा हूँ.
मोरूआ
जाति का डीएनए और ब्राह्मणों का डीएनए एक है. यानी की राजन दीक्षित ने
माइकल बामशाद से भी आगे जाकर पर्टिकुलर एरिया ढूंढकर निकाला, क्षेत्र
ढूंढकर निकाला और पब्लिश किया.
कैंब्रिज
में जब पब्लिश किया उसके बाद मोहन भागवत वहाँ जाकर वहाँ के लोगों से मिला.
भागवत ने सोचा कि वह हमारे पुरखों की भूमि हैं वहाँ जाकर देखना चाहिए.
इसलिए वहाँ गया और यह बात अपने पाञ्चजन्य नामक अखबार में फोटो सहित छापी.
उसमें लिखा कि हम अपने पुरखों से मिलने गये थे और मिलकर आये.
वामन
मेश्राम ने कहा हमें एतराज नहीं है तुम अपने पुरखों को मिलने जाते हो. तुम
अपने टिकट से गए, अपने टिकट से आए हमें क्यों ऐतराज होगा. मगर, भारत में
रहना है तो संविधान के अनुसार रहना होगा.
संविधान
वर्ण व्यवस्था को नहीं मानता है, संविधान जाति को नहीं मानता, संविधान
अस्पृष्यता को नहीं मानता. संविधान पिछड़े वर्ग पर शूद्रत्व थोपने का
मान्यता नहीं देता.
संविधान
आदिवासियों को जंगलों में रहने के लिए मजबूर नहीं करता. संविधान महिलाओं
को गुलाम बनाने का अधिकार नहीं देता है. संविधान सभी को समानता, बाराबरी का
अधिकार देता है.
केवल
महिलाओं को नहीं, पुरूषों को भी बराबरी का अधिकार देता है. यह हमारे भारत
का संविधान है. संविधान के अनुसार भारत में ब्राह्मणों को रहने का अधिकार
है.
डॉ.माइकल
बामशाद ने 2001 में ब्राह्मणों का पोस्टल एड्रेस यूरेशिया बताया. 2017 में
टोनी जोसेफ ने भी ब्राह्मणों को डीएनए के आधार पर विदेशी बताया. अब
‘‘सेल’’ के रिपोर्ट में भी ब्राह्मण विदेशी हैं और राखीगढ़ी में मिले कंकाल
का डीएनए साउथ इंडिया के द्रविड़ लोगों से मिला हैं.
यानी
ब्राह्मण फिर से विदेशी साबित हुआ है. लेकिन, ब्राह्मण-बनिया मीडिया हिंदी
और मराठी अखबारों में मूलनिवासी भारतीयों को गुमराह करने वाली खबरें छाप
रहे हैं.
ऐसे
अखबारों को चौक में जला देना चाहिए. हम जल्द ही डीएनए के ऊपर एक नई किताब
हिंदी, अंग्रेजी और भारत की तमाम भाषाओं में प्रकाशित करेंगेः प्रो. विलास खरात