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क्या इस साल UPSC में Rss से जुडे लोगोंकी ज्यादा भरती हुयी है?


 PREM kumar लिखते है 


1997-98 में संघ लोकसेवा आयोग(UPSC) की मुख्य परीक्षा के रिजल्ट आने के आसपास का समय था.

मैं इंटरव्यू के लिए कोचिंग क्लास के बारे में पूछताछ कर रहा था.

मेरे निकटस्थ संबंधी जो आर एस एस के मुखपत्र पाँचजन्य से जुड़े थे उन्होंने कहा कि इसमें कोई बात नहीं है मैं एक फॉर्म लाकर दे रहा हूँ तुम उसे भर दो और हमारी संकल्प नाम की संस्था भावी यूपीएससी इंटरव्यू अभ्यर्थियों के लिए हरियाणा के झिंझोली में पँद्रह दिनों का एक कैंप लगा रही है वहाँ बढ़िया मार्गदर्शन मिल जाएगा.

मैंने जब उनसे आर एस एस को लेकर अपनी सीमाएँ बताई तो उनका कहना था अरे जाओ यार अपनी तैयारी पर ध्यान देना और चले आना.

खैर एक सप्ताह बाद दिल्ली आई आई टी गेट से शाम चार बजे हरियाणा के झिंझोली में जेपी ग्रुप के फार्महाउस के लिए बस रवाना हुई उसमें दिल्ली से छांटे गए इंटरव्यू में शामिल होने वाले पैंतीस चालीस लोग थे.

मेरे लिए राहत की बात ये थी कि आई आई टी दिल्ली से मेरे मिजाज के दो मित्र भी साथ थे.

झिंझोली फार्महाउस पर जब उनका कार्यक्रम शुरु हुआ तो उस समय के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी बी पी सिंघल,किरण बेदी.

वरिष्ठ नौकरशाह विजय कपूर, के जे अलफॉंस जैसे लोग मॉक इंटरव्यू का सेशन लेने आते थे.

साथ ही राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से भी यूपीएससी इंटरव्यू में शामिल होने वाले पचास के करीब अभ्यर्थियों को लाया गया था.

उस समय आर एस एस स्कूल के इतिहासकार देवेंद्र स्वरुप जी से कैंप में मेरी कई बार खूब जम कर बहस हुई.

वे बड़े भले व्यक्ति थे ऊब कर कहते तुम्हारी सारी बातें तार्किक रुप से अपनी जगह सही हैं लेकिन विचारधारा का क्या होगा तुम तो अलगा जा रहे हो जबकि यहाँ समामिलन का प्रयास करना है.

वैसे ही तब इंद्रेश रस्तोगी जी से भी उस कैंप के सत्र के दौरान बहस खूब उलझ जाती वो भी यही कहते तुम हम जैसे नहीं हो पा रहे हो.


मेरी और मेरे आई आई टी वाले मित्रों की अपनी सिगरेट,बीयर,दारु,नॉनवेज खाने की अनुपलब्धता और असाधारण 'पवित्रता' वाली जीवनशैली से तालमेल न बैठ पाने की समस्याएँ अलग जीवन मुश्किल किए थीं.

सो इसी माहौल में अंततः हम चार लोगों को पाँच दिन बाद ही जेपी ग्रुप के चेयरमैन जो कैंप के कर्ताधर्ता थे द्वारा तलब किया गया वहाँ भी हम चारों की वैचारिक बहसबाजी के बाद हाथ जोड़ कर हमें अगले दिन निकल जाने के लिए कहा गया.

बेहिचक हमने अगली सुबह वापसी कर ली.

कैंप के दौरान करीब पाँच दिनों तक जो जाना सुना उसके मुताबिक आर एस एस द्वारा कई राज्यों में सिविल सेवा की तैयारियों के लिए संकल्प द्वारा लिखित परीक्षा व इंटरव्यू के लिए कोचिंग दी जा रही थी. लड़कों के रहने खाने की व्यवस्था भी हॉस्टल के द्वारा की जा रही थी.

साथ ही लोगों से ये भी पता चला कि इंजीनियरिंग, मेडिकल जैसे कोर्सेज के लिए भी संकल्प द्वारा ऐसी ही व्यवस्था शुरु की जा रही थी.


1997-98 से आज तक काफी पानी बह चुका.

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कितनी बडी संख्या में आईएस, आईपीएस और क्लास वन अधिकारी उनकी विचारधारा के साथ सिस्टम में शामिल हुए होंगे.?


ऐसे ही नहीं आपको कोरोना भगाने के लिए हवन करता और थाली पीटता डी एम नजर आता है.

और धर्म को सीधे सीधे राष्ट्रवाद से जोड़कर ट्वीट करता आईपीएस नजर आता है.


सो आज इस बात पर चौंकना की संघ लोकसेवाआयोग की परीक्षा में साठ फीसदी लोग संकल्प से संबंधित चुने गए आपकी मूढ़ता और बेखबरी को दिखाता है.



दूसरे राजनीतिक दलों को किसी ने रोका तो नहीं था लेकिन राष्ट्रीय पार्टी काँग्रेस आजादी की लड़ाई का भरम दिमाग में भरे काँधे पर एक परिवार की बँहगी उठाने में ही अपनी सार्थकता ढूँढती रह गई।

बहुजनों और पिछड़ों के नाम पर चलाई जाने वाली पार्टियाँ भी बस पारिवारिक जागीरदारी और संपत्ति जोड़ने में ही अपनी मुक्ति तलाशती रह गईं.

इनके समर्थक बस भैया और मैय्या के जयकारे में ही युगपरिवर्तन देख रहे थे।


सो होश की दवा कीजिए.

जिस विचारधारा ने इतने संयम से दबे पाँव जमीन पर पैर जमा जमा कर आप सबों को उठल्लू कर दिया और आपको बस काठ का उल्लू बना कर छोड़ दिया उससे इतनी आसानी से बिना कुछ ठोस काम किए पार नहीं पा पाएँगे आप.


याद रखिए.

जाति-पाति,खेती-किसानी जैसे मुद्दों पर ठोस कुछ किए बिना बस क्रांति के सहारे वैतरणी पार करने के चक्कर में कम्युनिस्टों की तरह पलिहर के बानर बन कर रह जाना ही नियति है.

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