1980 में बीजेपी नाम की पार्टी बन चुकी थी, लेकिन राजनैतिक सामाजिक जंग के मैदान में वो अकेले नही थी उसकी मदत के लिए आरएसएस वीएचपी जैसे कई छोटे बड़े गैर राजनीतिक संग़ठन मौजूद थे !
1984 का लोकसभा चुनाव करीब था, ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य भले उत्पादन करने में कोई श्रम नही करते लेकिन उत्पात की ज़मीन पर बहोत अधिक श्रम करते हैं, विश्व हिन्दू परिषद् के अध्यक्ष अशोक सिंघल और उनकी टीम ने पुरे देश एक मुहीम चलाई,
ऐसे मस्जिदों की निशानदेही की गई जिस पर विवाद हो कि यहां कभी हिन्दू मंदिर था और मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया.
अशोक सिंघल ने वादा किया इन स्थानों पर दुबारा हिन्दू मंदिर का निर्माण कार्य करेंगे, वीएचपी ने इस मांग को प्रचलित करने के लिए पूरे देश में रथ यात्रा निकालने का निर्णय किया जो 25 बड़े शहरों से गुजरते हुए 10,000 km का सफर तय करती,
यात्रा निकाली गई, रथ पर अशोक सिंघल सवार हुए जिसे भारी संख्या में जन समर्थन मिलना शुरू हुआ लेकिन ठीक बीच में इंदिरा गांधी की हत्या हो जाती है रथ यात्रा को स्थगित कर दिया गया.
बाद में कुछ वर्ष बाद रथ यात्रा का ब्लू प्रिंट लालकृष्ण आडवाणी वीएचपी से मांगकर खुद रथ यात्री बनकर देश को सांप्रदायिक दंगों की चपेट में झोंक देते है !
पोस्ट का प्रमुख बिंदु है जैसे अशोक सिंघल ने झुठे इतिहास के बुनियाद पर अनेक मस्जिदों पर हिन्दू मंदिरों को तोड़कर बनाने का आरोप लगाया क्या हमारे बहुजन समाज के संग़ठन सच्चे इतिहास की बुनियाद पर उन हिन्दू मंदिरों को चिन्हित नही कर सकते थे जो बौद्ध विहारों को कब्ज़ा कर मंदिर बना दिए गए.
भारत में अनेक बौद्ध विहारों को हिन्दू मंदिर बनाकर बुद्ध की मूर्ति को हिन्दू देवता की तरह पूजा अर्चना की जा रही है,
कांचीपुरम का बौद्ध विहार तस्वीर में साफ़ दिख रहा है बुद्ध की मूर्तियों को सनातन पद्धति से पूजा जा रहा है !
मंदिर पर मस्जिद नही बने बल्कि बौद्ध विहारों पर मंदिरों को खड़ा किया गया.
✍️Kranti kumar FB Repost Written on 27 August 2019.